Mahabharat ki kahani | ये कथा है संग्राम की विस्व के इतिहास की धर्म अधर्म सभी है इस कहानी मे

 महाभारत की कहानी एक ऐसी कहानी है जिसे शायद मुझे बताने की आपको जरूरत नहीं यह उन करोड़ों भारतीय के मनपसंद कहानी है जो कि अपने इतिहास के विषय में जानना और समझना चाहते हैं हालांकि महाभारत मेरे भी बहुत मनपसंद कहानी और मैं आप आपको इस कहानी के विषय में विस्तार पूर्वक बताऊंगा तो चलिए फिर शुरू करते हैं

इस कहानी में कई मुख्य किरदार है जैसे कृष्ण अर्जुन करण द्रोणाचार्य भीष्म पितामह दुर्योधन भीम नकुल सहदेव धर्मराज युधिष्ठिर द्रोपति  सुशासन शकुनी  धृतराष्ट्र भी बहुत से किरदार जो कि आपको कहानी के अंदर पता चलते रहेंगे

Mahabharat ki kahani
Mahabharat ki kahani


यह सभी किरदार ऐसे हैं की इनके ऊपर एक एक कहानी पूरी लिखी जा सकती है लेकिन इस पेज पर आपको केवल और केवल युद्ध किन कारणों से हुआ और किन के बीच हुआ क्या होना चाहिए ऐसी बहुत सारी बातें आपको इस कहानी के जरिए पता चला

महाभारत को एक राष्ट्र पर उतार पाना असंभव है क्योंकि यह सदियों सदियों से चल रहे घटना है और इस पेज पर मैं आपको युद्ध के दौरान क्या हुआ कैसे युद्ध हुआ किन कारणों की वजह से युद्ध हुआ यह बताने का प्रयास करूंगा

पांडवों और कौरवों का शिक्षा ग्रहण करना

कहानी की शुरुआत में कुछ पालक गुरु द्रोणाचार्य शिक्षा प्रदान कर रहे हैं उन्हें बालकों में से दुर्योधन और दुर्योधन के सौ भाई तथा पांच पांडव गुरु द्रोणाचार्य शिक्षा प्रदान कर रहे हैं गुरु द्रोणाचार्य बिना भेदभाव किए हुए कौरवों और पांडवों को सभी भरपूर ज्ञान देने का प्रयास करते हैं लेकिन सभी को एक ही विद्या नहीं दी जाती है जैसे भीम गदा चलाने में महारत हासिल करता है तो अर्जुन धनुष विद्या में महारत हासिल करता है सभी अलग-अलग विद्याओं में पारंगत होते हैं

को भी जैसी विद्या दी जाती है अब तो था जिसको जैसी विद्या पसंद है वह उसी विद्याओं में अपनी कुशलता को और भी निपुण बनाता है दुर्योधन भी गधा विद्या में निपुणता हासिल करता है

द्रोणाचार्य ने बिना किसी भेदभाव के कौरव और पांडवों को बराबर शिक्षा देने के प्रयास किया लेकिन उन्होंने अर्जुन को धनुष विद्या में सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाने का प्रयास किया तथा उन्होंने अपने बेटे अश्वत्थामा को भी इतनी शिक्षा प्रदान नहीं करें जितनी कि अर्जुन को दिए थे अर्जुन को उन्होंने एक महान योद्धा बनाया

कौरवों और पांडवों की विद्या समाप्त हो गई अब राज्यपाल संभालने का समय आया

राज्यभार संभालने का केवल दो ही लोगों के ऊपर बाहर आया यह तो राजा युधिष्ठिर बने पर या फिर दुर्योधन लेकिन सर्वप्रथम पांडवों के बड़े भाई को युधिष्ठिर को राजा बनाया गया क्योंकि युधिष्ठिर काफी नेक व्यक्ति है और अपनी बुद्धिमता के कारण बहुत ही कुशल भी है वह राज्य बाहर चलाने में सफल होगा

कि नहीं यह दुर्योधन को नहीं भाया और वह अपने मामा शकुनि के साथ मिलकर तरह तरह के षड्यंत्र रचने लगा और युधिष्ठिर को गति से उतारने के लिए उसने सारे प्रश्न कर दिए हताश और निराश होकर युधिष्ठिर ने अपने पद का त्याग कर दिया अगले पद का दावेदार केवल और केवल दुर्योधन ही था जिसे उस पद के लिए चुना गया उसने राज्य का भार संभाला और युधिष्ठिर को कोई दूसरा राज्य दे दिया गया जिसका नाम इंद्रप्रस्थ था सभी अपने-अपने राज्य में कुछ समय तक खुश रहें

शकुनी बहुत ही धूर्त और होशियार चालाक था जो कि पांडवों को बिल्कुल पसंद नहीं करता था और वह चाहता था कि किसी ना किसी प्रकार इस राज्य का अंत हो जाए वह कौरवों और पांडवों को हमेशा लड़ाने का प्रयास किया करता था अतः दुर्योधन शकुनी मामा को बहुत ही पसंद करता था क्योंकि वह उन्हे से शिक्षा और दीक्षा प्रदान करके अपने कार्यों को अंजाम दिया करता था

महाभारत  का युद्ध  होने का कोई  एक कारण नहीं था होने का उसमें कई छोटे-छोटे कारण जुड़े हुए हैं जिन्हें विस्तार पूर्वक इस कहानी में बताया जा रहा है तो कृपया आप इस कहानी को पढ़े और विस्तार पूर्वक उन चीजों को समझने का प्रयास करें

मामा शकुनी निरंतर षड्यंत्र रचता रहता था और किसी न किसी प्रकार से कौरवों और पांडवों के बीच प्रतिस्पर्धा में शक करवाने का प्रयास करता था वह दिखाने का यह प्रयास करता था कि कौन इनमें से श्रेष्ठ है


शकुनि की भी अपनी कहानी है मामा शकुनी की एक बहन की शादी धृतराष्ट्र से करवा दी गई जबकि धृतराष्ट्र एक अंधा व्यक्ति अतः इसी का बदला लेने के लिए वह निरंतर झगड़े करवाने का प्रयास किया करता था वह उस राज्य को नष्ट कर देना चाहता था


मामा शकुनी द्वारा शतरंज का खेल खेला गया

मामा शकुनि ने एक षड्यंत्र बनाया जिसमें वह पांडवों को फंसा देना चाहता था और वह दुर्योधन से सहमति वह प्लान बना कर एक खेल का आविष्कार करवाता है जिसमें जिसमें दोनों पक्षों को कौरवों और पांडवों के राजाओं को अपनी अपनी संपत्ति और अपनी अपनी क्षमता के अनुसार चीजों को लगाना था यह एक मनोरंजन का खेल था ऐसा सभी को लगता था लेकिन इस खेल को पहले ही रचा जा चुका था और इस प्रकार रचा जा चुका था कि इसमें लोगों की स्त्रियां तक लगाई गई आप बने रहिए आप को सब पता चलेगा


दुर्योधन दूसरी तरफ युधिष्ठिर बैठे और दोनों में अपनी अपनी संपत्ति अपने अपने अभिमान स्वाभिमान सभी चीजों को लगाने का ऐसा चक्रव्यू रखा गया जिसमें युधिष्ठिर ने अपने भाइयों को गांव को पर लगा दिया उधर दुर्योधन ने भी अपने भाइयों को दांव पर लगा दिया जीवन भर दास बनने के लिए क्योंकि दुर्योधन यह जानता था कि यह खेल केवल और केवल मैं ही जीत लूंगा क्योंकि जो पास से जो षड्यंत्र था वह मामा शकुनि द्वारा पूरा रचा हुआ था और इस कारण पांडवों को हार का सामना करना पड़ा जहां तक युधिष्ठिर ने अपनी पत्नी द्रोपति को भी दांव पर लगा दिया गया अतः वह भी एक दासी बन गई


भरी सभा में स्त्री द्रोपती का वस्त्र हरण


इस महाभारत युद्ध होने का मुख्य कारण भरी सभा में द्रोपदी के वस्त्र उतारे गए जबकि उस सभा में एक से एक महारथी बैठे थे उस तरीका नंगा स्वरूप सभी महारथियों ने देखा और किसी ने कुछ नहीं कहा उस सभा में धृतराष्ट्र गुरु द्रोण महामहिम भीष्म का अर्जुन नकुल सहदेव युधिष्ठिर भीम दुर्योधन दुशासन और भी बहुत सारे सभा जन यह सारा चीरहरण देखते रहे यह भी एक मुख्य कारण है महाभारत युद्ध का


इसके पश्चात पांडवों को 12 वर्ष का वनवास और 1 साल का अज्ञातवास दिया गया जिसे पांडवों ने पूरा किया और कुल 13 साल बाद युद्ध लड़ने के लिए वह फिर से हस्तिनापुर साम्राज्य में वापस आए और सूत्र लड़ने के लिए प्रस्ताव के सौ पुत्रों को पुकारा लेकिन सबसे पहले उनका सामना भीष्म पितामह से हुआ जिनसे वह लड़ना नहीं चाहते थे परंतु मजबूरी में उन्हें उनसे भी लड़ना पड़ा


13 वर्षों के बाद पांडवों ने अपनी सेना तैयार के तथा कृष्ण भगवान से मिलकर युद्ध की तारीख कि फैसला किया गया और युद्ध लड़ने की शुरुआत हो चुकी थी पांडवों की तरफ श्री कृष्ण अर्जुन भीम युधिष्ठिर नकुल और सहदेव तथा कौरवों की तरह दुर्योधन दुशासन करण भीष्म पितामह गुरु द्रोणाचार्य और धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों बहुत सारी सेना यह सभी थी सेना पांडवों की तरफ भी थी फिर युद्ध का प्रारंभ हुआ


युद्ध का प्रारंभ होना  जब सेनापति भीष्म पितामह थे


युद्ध का प्रारंभ हुआ तब कौरवों की तरफ से सेनापति भीष्म पितामह थे ऐसा कहा जाता है कि उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था कि जब वह इच्छा करेंगे तभी उनकी मृत्यु आएगी अन्यथा में क्यों नहीं आए ऐसा कुछ लिखो में लिखा है अतः भीष्म पितामह ने पांडवों की सेना का तहस-नहस करना शुरू कर दिया और पांडवों की सेना डर के भागने लगी पहले दिन भीष्म पितामह ने पांडवों की सेना पूरी तितर-बितर कर डाली क्योंकि इस बताना एक कुशल और बहुत ही शक्तिशाली होता थे उनकी डर से आती सैनिक भागने लगी तितर-बितर यह देखकर पांडवों के छक्के छूट गए

अब श्रीकृष्ण ने पितामह को मारने का प्रयास किया और उनके श्राप आपके अनुसार सेकंडनी हमने अपने हथियार को त्याग देंगे ऐसा उन्हें श्राप था सेकंड नहीं वह औरत थी जिन्हें भीष्म पितामह अपने जवानी के दिनों में उसके घर से उठा लाए थे तभी पर सुनाओ और भीष्म के बीच इसी कारण से युद्ध हुआ था जिसे भोले शंकर ने बीच-बचाव करके एक मार्ग निकाला की सीखने को कहा जब भी तुम भीष्म की मृत्यु की कामना करोगी तब तुम उसकी मृत्यु का कारण बनोगी


ऐसा श्राप भीष्म पितामह को मिला था का सेकंड नहीं उसका बदला हुआ रोड थी क्या बात श्रीकृष्ण को पता थी और युद्ध में सेकंड ने को सामने खा कर दिया आता भीष्म पितामह ने हथियार डाल दिए तभी सभी ने उनको कई तीर मार के छेद कर डाला उनको इतनी तीर मारे गए कि उनका एक भी शरीर का भाग सुरक्षित नहीं रहा सब जगह पर धीरे-धीरे लगी रहे फिर भी वह भक्ति कई दिनों तक इजिंदा रहा


सेनापति गुरु गुरु द्रोणाचार्य थे

आप सेनापति की मृत्यु हो चुकी थी तथा नए सेनापति का चुना जाना था अतः गुरु द्रोणाचार्य को नया सेनापति नियुक्त किया गया गुरु द्रोणाचार्य भी एक महान सैनिक और महान विद्या का रखें इनको भी जो तुम्हें मार पाना संभव था लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने छल करके उनको मारने का प्रयास किया उनसे कहा गया कि उनके पुत्र अश्वत्थामा की भीम ने मृत्यु कर दी है अतः यह बहुत ही निराश हो गए और अपने हथियार जैसे ही जमीन में डाला तो द्रुपद का बेटा निर्गुण आचार्य का सर काट डाला द्रोणाचार्य का अंत हो गया


जब सेनापति महारथी कर्ण थे


इस कहानी को सबसे फेवरेट पात्र मेरा यही है कौन मैंने कहा कि इसमें जितने भी पात्र हैं सब के विषय में एक एक पूरी कहानी लिखी जा सकती है लेकिन यहां पर आपको थोड़ा संक्षेप में बताया जा रहा है


उनको सेनापति बनाया गया तत्काल ने पांडवों की सेना पर ऐसा प्रहार किया कि पांडवों की सेना अपनी जगह से हल कर भागने लगी और उसने भीम नकुल सहदेव और युधिष्ठिर को भी कई बार घायल किया और युद्ध से भगा दिया अब उसका सामना अर्जुन से हुआ क्योंकि उसका प्रतिद्वंदी अर्जुन था और वह केवल अर्जुन को ही मानना चाहता था क्योंकि ऐसा माना जाता था कि अर्जुन आर्यवर्त यह भारतवर्ष का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर है और कौन उसी को मार कर के अपने आप को सर्वश्रेष्ठ उधर साबित करना चाहता था


महाभारत के अनुसार कौन के पास ऐसे सकते थे जो पूरे महाभारत में किसी के पास नहीं थे कहां अकेले पूरे महाभारत को नाश कर सकता था उसके पास कवच और कुंडल थे जो उसे बचपन से ही पैदाइशी ही उसे मिले थे जो कहा जाता है कि सूर्य भगवान का अंश था उस कवच और कुंडल में इतनी ताकत है कि वह बड़े से बड़े अस्त्र को भी पी जाता था वह ब्रह्मास्त्र तक को पीने की क्षमता रखता था और वह बड़े से बड़े हथियार को भी हजम कर जाता था


जब तक कवच और कुंडल कान के शरीर में थे तब तक उसे मार पाना संभव था अतः युद्ध होने से पूर्व अर्जुन के पिता देवराज इंद्र ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने एक कार्य का रूप रखकर करण के पास गए और उनसे कवच और कुंडल मांगलिया कांड बहुत ही तानी था पता उसने कवच और कुंडल दे दिए भी उसे हरा पाना बहुत ही मुश्किल हो रहा था अतः उसके साथ भी छल किया गया


तो के कुछ नियम थे कि सभी व्यक्ति अपने समान योद्धा के साथ युद्ध लड़ेंगे और कोई भी यदि मिश्रित रहे या अपने छत से नीचे है या उसके हाथ में हथियार नहीं है तो उस से युद्ध नहीं लड़ा जाएगा परंतु युद्ध में इस नियम को पूरी तरह तोड़ दिया गया क्योंकि जैसे ही कान और अर्जुन का युद्ध हो रहा था वैसे ही कान का पहिया धरती में धंस जाता है जिससे कार्ड निकालने के लिए नीचे उतरता है इसी मौके का फायदा उठाते हुए अर्जुन उसके ऊपर प्रहार कर देता है जिससे कर्ण की मृत्यु हो जाती है


जब कान नीचे उतरा तो उसके हाथ में कोई हथियार नहीं थे अतः अर्जुन को उसके ऊपर प्रधान नहीं करना चाहिए नियम के अनुसार परंतु यह सब कृष्ण का रचा हुआ चक्रव्यू था

इसी प्रकार धीरे-धीरे करके पांडवों ने कौरवों के सभी महारथी और कौरवों के 99 भाइयों को मार डाला लास्ट में दुर्योधन बचा जिससे भीम ने उसकी जांग को चीर कर मार डाला लास्ट में अश्वत्थामा बच्चा जिसने पांडवों के पांचों पुत्रों को मार डाला 


युद्ध समाप्त हो गया और आर्यवर्त में सैकड़ों लोगों की जानें गई इस युद्ध में न जाने कितने लोग मारे गए यह तो केवल महारथी थे और उनकी गणना कोई नहीं करता जो इस युद्ध में सैनिक थे सेवाकार्य थे 


शिक्षा

क्या कहानी महाभारत की कहानी है और इसमें मैं आपको कोई शिक्षा नहीं दूंगा आप मुझसे ज्यादा विद्यमान है और आपने यह कहानी यकीनन पड़ी होगी या टेलीविजन में देखी होगी तो आपको इस कहानी से जैसी भी शिक्षा मिलती है आप जरूर उच्च शिक्षा को अपने जीवन में उतारने


महाभारत युद्ध होने का केवल एक ही कारण था वह था किसी नारी का भरी सभा में अपमान करना इसी वजह से इस युद्ध का आरंभ हुआ क्योंकि जब से कौरवों ने इस कार्य को किया था पूरे भारतवर्ष में सभी छोटे बड़े घर वाले अपने परिवार वालों में कलेश होना शुरू हो गया था वह भी अपनी-अपनी बीवियों को पत्नियों को दांव पर लगाने लगे थे और पूरे भारत में नारी को केवल दोनों पर लगाया जा रहा था अतः यदि यह युद्ध ना होता तो आज भी नारी केवल दांव पर लगती और उसका सम्मान नहीं होता


इस युद्ध में कृष्ण कई महारथी जो कि पूरे पांडव सेना को खत्म कर देते हैं छल से मारा था से मारना जरूरी था नहीं तो आज शायद स्त्रियों का सम्मान ना होता यह पूरी कहानी एक स्त्री पर आधारित है जिसने सैकड़ों लोगों की जानें ले डाली


इस कहानी से सैकड़ों शिक्षा एवं सैकड़ों मार्गदर्शन है जो कि लोगों को टेलीविजन या फिर महाभारत की कहानी को पढ़ने के पश्चात पता चलता है मैंने आपको इस कहानी के विषय में छोटे-छोटे पात्रों को समझाने का प्रयास किया है


क्योंकि यह कहानी लोगों की आस्था से जुड़ी हुई है चिड़िया यदि लेखक के द्वारा प्रसारित कहानी आपको समझ में आई हो और अच्छी लगी हो तो तो 4 शब्द जरूर लिखें इससे लेखक का मोटिवेशन बढ़ता है वह और आपके लिए अच्छे-अच्छे चीजों को उपलब्ध कराएगा


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